Saturday, December 19, 2009

इतना असली है चेहरा तेरा


मुझे बताने की ज़हमत भी नहीं उठाई जाती
दूर रहा जाता है, कैफ़ियत भी नहीं बताई जाती

तुम डूबे हो खुद में, सीप में कनी की तरह
मैं समंदर में हूँ, इस नमक की कीमत नहीं लगाई जाती

कायनात थी पहले-पहल, दस आयामों में बँटी
जरूर होगी, वरना क्यूँ तेरी तासीर समझ में आई नहीं जाती

हवाओं में खुशबू, फ़िजाओं में मस्ती, हर पेड़ पे फूल खिले हैं
कुदरत जो खेलती होली, हमसे मनाई नहीं जाती

चंद फूल टेसू के इकट्ठा कर, रंग बनाऊँ तुझे लगाऊँ
इतना असली है चेहरा तेरा, नकली गुलाल लगाई नहीं जाती

मेरी गज़ल पूरी होने को आई मगर तुम न आए
जाने क्या रोकता है, आखिरी लाइन लिखी ही नहीं जाती

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।