Wednesday, September 23, 2009

क्या-क्या है कवि











कवि


आखेटक है


क्षण-शावक का


कवि


बहेलिया है


पल-पंछियों का


कवि


मछुआरा है


झलक दिखला गायब होती झख का


निरंतर दौड़ता है


अपना


झब्बा लिए


कहाँ, कब, कौन-सी


तत-काल- तितली आ जाए जाली में।


कभी मगर, हाथ आकर भी छूट जाता है शावक


पंछी, मछली और तितली


बस एक कौंध, एक कसक, एक ख़लिश, एक तपिश रह जाती है


उस हाथ आए


और छूट गए


अवसर की।


अक्सर


मुझे उन गँवाए मौकों की


याद सताती है


और


कवि बनाती है

विज्ञान




 


टकराते हैं बादल दानवाकार

चमकती है

बिजली

किंतु गर्जना हमें डराती है

जो चमक चुकी बिजली के

युगों बाद

हम तक आती है...

अक्सर

मुझे डराती है

लंबी, उदास और ठंडी-अकेली

अँधियारी रातें

जबकि

तुम्हारी याद

चमक कर पहले ही

दूर चली जाती है....

बनना कविताओं का

x
कुछ कविताएँ



मेरे अंदर


कहानियाँ बन जाती है


कुछ कहानियाँ


कविता बन


मुझमें


घर कर जाती है...


कुछ कविताएँ


चोला चढ़ाकर


मूर्तियाँ बन जाती है


कुछ कहानियाँ


झटककर


अपना सारा स्थूल


महज सुगंध


बन जाती है

Tuesday, September 22, 2009

हर क्षण









हर मुद्रा देख ली नहीं जाती,






हर शब्द






पढ़ नहीं लिया जाता,






हर झंकार






सुन नहीं ली जाती,






फिर भी






नर्तक, कवि






चित्रकार






रचते हैं






हर क्षण






राजेश दीक्षित नीरव

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।