Saturday, October 31, 2009

तुम दूर हो


सोचा था वह कुछ और था
क्य़ोकि दूर रहकर
लिखता-लिखाता नहीं
चिढ़ता-चिढ़चिढ़ाता था......






Thursday, October 29, 2009

ये आँसू....



जैसे जज्ब़ कर लेती है

सिंचिंत सारा पानी

गुडाई की गई मिट्टी

कि पौधे को मिल सके

नई शक्ति ,जीवंतता ,नमी,जीवन

देर तलक....ः

वैसे ही मैं पी जाता हूँ

अंदर ही अंदर

ताकि लिख सकूं

और ऊर्जित भी,

जो तुम्हें दे सकूं देर तलक.....

Wednesday, October 28, 2009

शोध !



मैं क्य़ा खोजने जाता हूँ



पर्वतों पर


जो मुझे मिलता नहीं


कहीं पर


(अज-कम-अज नहीं ही


अभी तक)

Tuesday, October 27, 2009

गोरखधंधा



विषम साँसों का सम हो जाना



..................... तुम्हारा जाना


सम साँसों का विषम हो जाना


तुम्हारा आना


(कभी-कभी उलटबांसी हो जाना


......................)

Monday, October 26, 2009

एक सुख





जीवन हो


कविताओं के आसपास


या हों कविताएँ जीवन के आसपास

Sunday, October 25, 2009

खुशनसीबी
मैं सोचता हूँ
कितने ख़ुशनसीब है वो लोग
जिनके जीवन के आसपास

एक पुरानी
महबूबा हो......

कभी-कभी

मुझे भी ऐसी
खुशनसीबी हासिल होती है
जब तुम
बहुत दिनों बाद
वापस आती हो









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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।