Saturday, December 5, 2009

मडगाँव




शांत,सुखद
मन को अच्छा लगने-सा
गोवा का एक कस्बा-सा
......मडगाँव.......
नारियल,कटहल के पेड़
होटल के दालान में
छाई ,लटकती
किसी बेल-सा
सुरम्य ठाँव
' यहीं रुको एक और दिन '
कहती है एक खूबसूरत गोवन-सी लड़की
...................................कहाँ जाँव ?

Friday, December 4, 2009

कोंकण( मुम्बई से गोवा)




हरियाले ख़ेत पानी भरे
पहाड़ भी हरे-हरे
मख़मली कालीन बिछी मिट्टी
चारों ओर हरियाली,पानी
पहाड़ और पल-पल आती सुरंगें
उतर जाएं यहीं
डेरा डाल लें
मन में बस गया
कोंकण का शवाब
मगर ,-मुम्बई की ग़र्मी से या
रात्रि –जागरन से-
बोले तो हालत है ख़राब.....

Thursday, December 3, 2009

फिर भी मुम्बई




सैंकड़ों चमचमाते ,बजते,
एक सीध में लटके
स्टील के हत्थे
...........
थोड़ी देर में व्यस्तताएँ(लऊकर)
इन पर लटक जाएँगी
लोकल ट्रेन में

Tuesday, December 1, 2009

नई तरह


अब मुझे फिर से
कविता नजर आने लगी है
दौड़ते वाहन, भागते लोग, धूल-गुबार
तेल भरी हवाएँ, पसीना
सबमें एक लय, एक ताल
सुनाई आने लगी है
बेढंगी चाल, बेढब हाल, खोई सी नजर
असमान साँसें, फिर से
एक तरह पाने लगी है
जंगली घास का छोटा फूल
फुदकती गोरैया, रंग-बिरंगी सब्जियाँ,
आसमान में बनता इंद्रधनुष
सब पर नजर जाने लगी है
अब मुझे फिर से
कविता नजर आने लगी है....

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।