Sunday, February 7, 2010

विध्वंस है सृजन

यह विध्वंस है या सृजन रे मन!

मन जब-जब आहत होता है,
कुछ न कुछ निर्मित होता है,
है ये कैसी टूटन, जो हरदम रचती है नवीन रे मन
यह विध्वंस है या सृजन रे मन!
कभी लगता है हो गया हूँ हल्का
कभी सब कुछ, भारी-सा लगता है
है यह कैसा भार,मायावी हैजिसका वजन,रे मन
यह विध्वंस है या सृजन रे मन!
हल्का होकर उड़ता हूँ गगन में.
कभी रसातल में दब जाता हूँ
है यह कैसा बोझ,मुश्किल है जिसको करना वहन,रे मन
यह विध्वंस है या सृजन रे मन!
कभी लगता है तोड़ दूँ सब कुछ
कभी घरोंदे बनाने को जी करता है
है यह कैसा स्वप्न,रेशमी है जिसकी छुअन,रे मन
यह विध्वंस है या सृजन रे मन!

No comments:

Post a Comment

मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।