Sunday, May 16, 2010

मुझसे सहा जाता नहीं...


बार-बार तुम्हारे नयनों में नीर का छलछलाना
साथी मुझसे सहा जाता नहीं
अंर्तमन में है पीड़ा सभी को
बिन पीड़ा जीवन कोई पाता नहीं
कैसे कहूँ, डाल लो आदत सहने की
आशावादी यह कह पाता नहीं
बार-बार तुम्हारे नयनों में नीर का छलछलाना
साथी मुझसे सहा जाता नहीं
माना तुम्हारी परिभाषा से
यह दुख है सुख का साधन
एक बात तुम भी मानो
यह साधन साध्य तक पहुँचाता नहीं
बार-बार तुम्हारे नयनों में नीर का छलछलाना
साथी मुझसे सहा जाता नहीं
कैसे कहूँ तुम्हारा कल्पना दर्शन
कहीं-न-कहीं दोषयुक्त सखे
स्वयं मेरा अनुभव दर्शन भी तो
मुझको छिद्रांवेषण सिखलाता नहीं
बार-बार तुम्हारे नयनों में नीर का छलछलाना
साथी मुझसे सहा जाता नहीं
प्रकृति के नियमों पर चलो
रोने से पहले जी भर हँस लो
नियति को जो मंजूर वह जाने
कर्म से विमुख भी तो रहा जाता नहीं
बार-बार तुम्हारे नयनों में नीर का छलछलाना
साथी मुझसे सहा जाता नहीं

2 comments:

  1. karm se vimukh bhi to raha jaata nahi...waah sir bahut khoob....

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति! इसी को अपनत्व कहते हैं!

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।