Sunday, May 23, 2010

विलंबित खुशियाँ


क्या इनको लेकर करूँगा,

असमय जो तूने दी सौगातें
क्या इनको लेकर करूँगा।।
जब इनकी कुछ चाह मुझे थी.
जब इनकी परवाह मुझे थी,
उस समय तूने की बेपरवाही अब
क्या इनको लेकर करूँगा।।
खुशियों को गम में बदलकर,
ग़म को भी भोगा तनहा,
अब यदि नीरव नीर बहाएँ,
क्या इनको लेकर करूँगा।।
मेरे नेह का कोमल पौधा,
मुरझाकर जब सूख गया।
अब यदि मधुऋतु आए,
क्या इसको लेकर करूँगा।।
मेरे भावमय छंद सुन,
तू हरदम मुझ पर हँसा,
मैं मरणशय्या पर, तू इनको गाएँ,
क्या सुनकर इनको करूँगा।।
ना अब दे तू मुझे कुछ,
मैं कुछ ना ले सकूँगा,
तनहा, तगं हाथ रखा ताजिंदगी,
अब भी तनहा खाली हाथ ही मरूँगा।।

3 comments:

  1. sahi baat hai waqt guzarne ke baad to baarish bhi nahi fabti...bahut sundar rachna neerav ji

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  2. खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है

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  3. बहुत सुन्दरता से भाव व्यक्त किये हैं.

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।