Wednesday, May 26, 2010

पुरवाई बहार की !


घूँट-- दर घूँट पीकर दर्द तेरे इंतजार का
रफ्ता-रफ्ता देख यूँ ही उम्र गुज़ार दी

खुद की हार का ग़म, या तेरी जीत की खुशी
हर शाम जिंदगी की मगर, यूँ ही निसार की

कोई आकर पूछेगा तो इतना ही कहेंगे नीरव
अबके ये बाज़ी बिना खेले ही हार दी

कोई एक ज़ख्म हो तो बताए दिल पर
नश्तर को भी अब तो, मिलती है लाचारगी

कोई सहेगा क्या हम- सा दर्द ए दोस्त
टूटे जब भी ऐसे हँसे गोया खुशी इज़हार की

वो तेज झोंके -सा आकर तोड़ गया, आखिरी पत्ता
दरख़्त का, हम ये समझे कि चली पुरवाई बहार की

3 comments:

  1. बहुत उम्दा भाव!

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  2. वो तेज झोंके -सा आकर तोड़ गया, आखिरी पत्ता
    दरख़्त का, हम ये समझे कि चली पुरवाई बहार की

    वाह ! बहुत खूब

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।