Friday, July 2, 2010

दूरियाँ



सोनजूही के
खिलते फूलों के बीच
मखमली दूब पर लेटकर
कभी सोचा था मैंने
काश तुम भी यहाँ होती
तुम होती तो कैसा होता
आज सचमुच
तुम मिली उसी बगीचे में
ओह! किंतु हम
दूर ही रहे
सोनजूही से
मैं नहीं चाहता था
टकराना
सच को सपने से

4 comments:

  1. मैं नहीं चाहता था
    टकराना
    सच को सपने दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई

    ReplyDelete

मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।