Saturday, July 31, 2010

एक से हैं मिलन और ज़ुकाम...


बूझो तो?
-जब-
सब कुछ बेमजा,
बेरंग, बेमतलब
दिखलाई दे,....।
आँखों के आगे धुँधलाया
आलोक, सूनापन और गहराई हो....।
साँसों में उखड़ेपन
की गरमाई हो....।
स्वाद
स्वेद कण हो माथे
पर,
नासिका पुटों से
नीर झरे
-तब-
समझ लो
कुछ और नहीं
वह सर्दी है

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मेरा काव्य संग्रह

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।