Saturday, July 31, 2010

तुम सोचती हो


पर्दे के आर-पार

आँखों पर पड़े
गुलाबी पर्दे के उस ओर
देख रहा हूँ – स्पष्ट –
दूर नहीं है- मेरा यथार्थ-
कठोर-सा (कटु नहीं मगर)-
ठोस (मगर असंवेदन नहीं)।
ऐ बताओ।
तुम्हारी आँखों के आगे क्या है?
(पर्दे (!) का रंग औ’ उससे परे)
-----
जवाब (जो, मैंने सोचा, तुम सोचती हो)
ना कोई पर्दा ना
रंग कोई
ना परे कुछ
मेरी आँखें
देख रही है
सामने तुम हो,
बस तुम....
तुमसे पहले
तुमसे परे, बस तुम....।

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।