बैठे
क्या देख रहे हो’ मैंने पूछा
‘मैं ? तुम्हें’ तुमने
उसी क्षितिज की ओर
देखते हुए कहा।
‘कैसे, मैं तो तुम्हारे पीछे हूँ’
अच्छा देखो—
वहाँ दूर
जहाँ आसमान भी है,
सागर भी है
और अँधेरा भी,
(वही सब कुछ जो तुम्हें अच्छा लगता है)
इन सबको एक साथ देखना
क्या तुम्हें देखना
नहीं है?
वाह...बहुत सुन्दर
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