Friday, January 29, 2010

असमंजस

हार कहूँ इसको अपनी,या कहूँ अपनी जीत इसे .
स्वाद सदा कड़ुवा निकला
जब भी चखा मैंने जय को
मीठी लगी पराजय अपनी
त्रासदी कहूँ या रीत इसे .
शब्द खोए रहे सदा ही
जब भी मैंने छन्द लिखे
भाव सहित लिखा फिर भी
दर्द कहूँ या गीत इसे .
जिसको मैंने दिया सम्बल
उसी के हाथों हुआ हूँ निर्बल
तुम तो मेरे दुश्मन निकले
कैसे कहूँ मनमीत इसे .
मीठे बैन सुनने को हरदम
आतुर रहता मन मेरा
कानों को जो कटु लगता
कैसे कहूँ संगीत इसे .
मैंने तो बस पाई टूटन
तुमने जब भी निर्माण किया
यह तो है म्रगत्रश्णा नीरव
कैसे कहूँ प्रीत इसे .

Thursday, January 28, 2010

अर्जुन-दुविधा


अपनी हार भी कर स्वीकार रे मन
महत्वाकांक्षी तू रहा सदा से
जीतता तू रहा निरंतर
अपने कर्मफल से लेकिन
ना कर तू इंकार रे मन
अपनी हार भी...
जितनी चाही थी पी तूने
मधु सदा ही होंठों से
अपने हिस्से की हलाहल को भी
अब कर स्वीकार रे मन
अपनी हार भी...
तेरी नैया को रे माँझी
मिला किनारा ही हरदम
अनुभव इसका भी ले ले अब
जब मिली तुझे मझधार रे मन
अपनी हार भी...
सुख-दुख की चिंता में
व्यर्थ रहा तेरा चिंतन
तेरे कर्मों का ही फल है
तू समझ रहा जिसे दुर्भाग्य रे मन
अपनी हार भी...
कौन है अपना कौन पराया
तू चिंता न कर इसकी
अपनी रौ में ही बहता रह नीरव
कर सबसे तू प्यार रे मन
अपनी हार भी...
तेरे संकोचों ने ही देख ले
तुझको आज हराया है
रणभूमि है ये नीरव
कर दुश्मन पर वार रे मन
अपनी हार भी...

Wednesday, January 27, 2010

भूल

समझ नहीं पा रहा हूँ

तुमको न समझ पाना
मेरी हार है या है
मरे अनुभवों का कच्चा निकल जाना
समझ नहीं पा रहा...
अब तक मेरे अनुमानों पर
गर्व मुझे खुद होता था
तुम मेरी अपवाद हो या तो
मैंने तुमको न पहचाना
समझ नहीं पा...
अनजाने सायों पर भी मेरी राय
सही सदा निकलती थी
मेरा सच झूठा निकला उसी पे
जिसको था मैंने जाना
समझ नहीं पा...
चाहे जो भी बात हो लेकिन
नहीं यह स्वीकार मुझे
सब कहते हैं भुला दो नीरव
समझ इसे अफसाना

समझ नहीं पा...

आशंका



टूट न जाऊँ कहीं सदा को डरता है मन

वक्त के नटखट हाथों में
जर्जर तन है आहत मन
कुछ न कुछ है रोज टूटता
चाहे तन हो चाहे मन
टूट न जाऊँ...
तिनके-तिनके जुटा जतन से
अपना नीड़ बनाया था
तेज झोंकों से न बिखेर
पवन इसे दे डरता है मन
टूट न जाऊँ...
अपनी मीत बनाया जिसको
तोड़ा हर दम उसी ने मुझको
किसको आज कहूँ अपना
जब मनमीत हुआ दुश्मन
टूट न जाऊँ...
अपने पंखों के बल पर
कब तक मैं उड़ पाऊँगा
अभी तो है शुरुआत सफर की
फैला है सीमाहीन गगन
टूट न जाऊँ...
बीच भँवर में मेरी नैया
तुम डूबोना जो चाहो
तन मेरा डूबो दो चाहे
नहीं डूबेगा मेरा मन
टूट न जाऊँ...
निराशा की तिमिर निशा में
क्या समझे डर जाऊँगा
अब भी बचा हूँ कुछ तो नीरव
किया भले सब कुछ अर्पण
टूट न जाऊँ

Tuesday, January 26, 2010

आहट



दूर किसी के आने की आहट मन सुनता है

चिर प्रतिक्षित है आहट ये
और चिरपरिचित भी शायद
पायल की कोई मधुर झंकार मन सुनता है
दूर किसी के....
कोमल पाँवों का स्वागत
फूलों बिछाकर राहों में
काँटे राहों के पलकों से मन चुनता है
दूर किसी के...
ये कर लूँगा वो कर लूँगा
ये मैं दूँगा वो मैं दूँगा
उनके आने से पहले ही सपने मन बुनता है
दूर किसी के...
बहुत दूर से आए हैं
बहुत हैं ये थके-थके
'प्यास लगी है पानी ला' मन सुनता है
दूर किसी के...
नेहिल तेरी चुभन है रे मन
स्वप्निल तेरी है छुअन
यहीं ठहरूँगा अब कहेगा नीरव मन बुनता है
दूर किसी की...

Monday, January 25, 2010

पाषाण नहीं हृदय मेरा

पाषाण नहीं हृदय है मेरा

पूजा नहीं इसे प्यार चाहिए
शासन करना नहीं चाहता
थोड़ा-सा अधिकार चाहिए
कब चाहा भर कर दे साक़ी
दुलार सहित पैमानों में
लेकिन जब मधुशाला जाऊँ
थोड़ी-सी मनुहार चाहिए
देना ही सीखा है अब तक
कुछ पाऊँ नहीं रही यह इच्छा
नेह मुझे भी है इच्छित
नहीं मगर व्यापार चाहिए
संघर्षों में बीता जीवन
दर्द की पहचान मुझे है
काँटे सह लूँ सीने पर
मन को कोमल व्यवहार चाहिए
गले में माला हो फूलों की
नहीं कभी यह स्वीकार मुझे
जब कोई सत्कार्य करूँ
तेरी बाँहों का हार चाहिए
कब मैंने चाहा तन तेरा
मन पर लेकिन अधिकार चाहिए
है तैयार मिटने को नीरव
थोड़ा-सा पर प्यार चाहिए


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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।