Friday, February 12, 2010

छोड़ चला मेरा साया


खुलकर जब भी हँसना चाहा
दिल जाने क्यों भर आया
खुशी हरदम बेगानी निकली
गम को अपना पाया
मधुशाला में था कोलाहल
मन मेरा भी मतवाला था
मधु को जब भी चखना चाहा
बस हलाहल ही पाया
दिन अकेले ही बिताकर
शाम को तनहा बनाकर
रात को जब साथ चाहा
स्वप्न सजा न पाया
सुबह जब होने को थी
दिल बहकने लगा था
जग को जगाने लेकिन
मन पंछी चहचहा न पाया
रिश्ते नातों को भुलाकर
जब चल पड़ा यायावर
साथ जिसको रहना था हरदम
वो भी छोड़ चला मेरा साया

अर्पित तुमको ही


अर्पित तुमको ही प्रिय मेरे
लिखित-अलिखित सब गीत
शब्द मेरे खोए रहते
कभी लयबद्ध न हो पाते
तुम ना होते तो प्रिय
मेरे भाव होते विपरित
अर्पित तुमको ही प्रिय मेरे
लिखित-अलिखित सब गीत
सब कुछ सूना-सूना रहता
रूखा-रूखा रहता जीवन
तेरी आहट से ही जाना
कैसा होता है संगीत
अर्पित तुमको ही प्रिय मेरे
लिखित-अलिखित सब गीत
तुमने मुझको शब्द दिए
अर्थ भी समझाए तुमने
छंद बने, सुरबद्ध हुए
और बने तब ये गीत
अर्पित तुमको ही प्रिय मेरे
लिखित-अलिखित सब गीत
अब भी कुछ बाकी है
अंतर से आती आवाज
किंतु न ये बाहर आएँगें
तुम न करोगे यदि इनको मुखरित
अर्पित तुमको ही प्रिय मेरे
लिखित-अलिखित सब गीत
जब भी मैं कुछ नया लिखूँगा
भेंट रहेगा तुमको नीरव
मैं हरदम रहूँगा लिखता
तुम देते रहना मुझको प्रीत
अर्पित तुमको ही प्रिय मेरे
लिखित-अलिखित सब गीत

Thursday, February 11, 2010

कब तक धीरज रखूँ

कब तक धीरज रखूँ कब तक आस बँधाऊ मन को मन से
युगों-युगों से प्रतीक्षारत था
बैठा मौन अटल किंतु विकल
ना तुम आते हो, ना आता है तुम्हारा कोई संदेश पवन से
कब तक धीरज रखूँ कब तक आस बँधाऊ मन को मन से
घोर वन अँधेरी राहें
मौन हृदय बेचैन निगाहें
ना तुम बतलाते हो
ना कोई बतलाता है राह गगन से
कब तक धीरज रखूँ कब तक आस बँधाऊ मन को मन से
लय मेरी टूटी जाती है
छंद विस्मृत हो रहे
ना तुम गाते हो
ना गाता है कोई गीत मिलन के
कब तक धीरज रखूँ कब तक आस बँधाऊ मन को मन से
बने निर्दयी इतने तुम कैसे
क्या याद तुम्हें ना आई होगी
जो सचमुच तुम भूले नीरव शाप लगेंगे तुम्हें विरहन के
कब तक धीरज रखूँ कब तक आस बँधाऊ मन को मन से

Wednesday, February 10, 2010

ये कैसा बँटवारा

रोशन जब सबका घर है
क्यों मेरे घर अँधियारा है
दीप मेरे क्यों जल ना पाते
हर जतन अपनाता हूँ
तुमको उजाला, मुझको अँधियारा हरदम
ये कैसा बँटवारा है
रोशन जब सबका...
मुझको भी तेरी चाह प्रिये
तुझको भी मुझसे प्यार प्रिये
तब मिलन में क्यों ये बाधा
क्या मुझसे बैर तुम्हारा है
रोशन जब सबका...
हर मयकश को मधु पिलाते
मुझको ही बस प्यासा रखते
हम भी मतवाले मधुशाला पर
क्या बनता नहीं हक हमारा है
रोशन जब सबका...
हर कश्ती जब साहिल पाती
मेरी ही क्यों भँवर में जाती
इतना न करो सितम ओ सागर
मुझको भी प्रिय किनारा है
रोशन जब सबका...
गैरों पर यूँ रहमो करम
बस मुझ पर ही जुल्मों सितम
कैसे प्रियतम हो तुम नीरव
ये कैसा प्यार तुम्हारा है
रोशन जब सबका...

Monday, February 8, 2010

बुझता दिया

ढलता जाता जीवन मेरा
जलता जाता तन-मन मेरा
मद्धम-मद्धम साँसे चलती
कंठ अवरूद्ध होता जाता
कुछ चलता कुछ गिरता
इस तरह है आलम मेरा
ढलता जाता जीवन मेरा
पंखों को आहत कर
तुम तो अपनी राह हुए
अब कैसे मैं उड़ पाऊँगा
दूर बहुत है अभी बसेरा
ढलता जाता जीवन मेरा
बुझता-बुझता दीपक हूँ मैं
उस पर तुम तूफाँ लाए
अब कैसे मैं जल पाऊँगा
दूर बहुत है अभी सवेरा
ढलता जाता जीवन मेरा

कर्मों से विश्वास उठा जब

भाग्य को मैंने मान लिया

सबकुछ शायद गलती मेरी

दोष नहीं है कुछ भी तेरा

ढल जाऊँगा जल्द सदा को

बस यादें ही रह जाएँगी

यादों को भी बिसरा देना नीरव

बदला पूरा होगा तेरा

ढलता जाता जीवन मेरा

आशा की परिभाषा

तब आए तुम जब टूट चुकी थी आशा
सपने बहुत सँजोए हमने
थे अरमान बहुत सारे मन में
देर बहुत की प्रिय तुमने
अब टूट चुकी अभिलाषा
सुख सारे त्याग चुका था
दुख को गले लगाया था
अब पहुँचे तुम जब बदल चुकी
सुख-दुख की प्रत्याशा
मन में भावों का तूफान उठा था
शब्दों में न बाँध सका था
भाव बिसरे, शब्द खोए
अब तो है केवल निराशा
स्मृति की मदिरा मन-प्याले में ढाल
जीवन की मधुशाला में
बैठा रहा निढाल
तब आए जब टूट चुका है प्याला
लेकिन अब भी यदि आए हो तुम
सब कुछ नया जुटाऊँगा
नेह तुम्हें अर्पित कर नीरव
आशा की बदलूँगा परिभाषा

Sunday, February 7, 2010

विध्वंस है सृजन

यह विध्वंस है या सृजन रे मन!

मन जब-जब आहत होता है,
कुछ न कुछ निर्मित होता है,
है ये कैसी टूटन, जो हरदम रचती है नवीन रे मन
यह विध्वंस है या सृजन रे मन!
कभी लगता है हो गया हूँ हल्का
कभी सब कुछ, भारी-सा लगता है
है यह कैसा भार,मायावी हैजिसका वजन,रे मन
यह विध्वंस है या सृजन रे मन!
हल्का होकर उड़ता हूँ गगन में.
कभी रसातल में दब जाता हूँ
है यह कैसा बोझ,मुश्किल है जिसको करना वहन,रे मन
यह विध्वंस है या सृजन रे मन!
कभी लगता है तोड़ दूँ सब कुछ
कभी घरोंदे बनाने को जी करता है
है यह कैसा स्वप्न,रेशमी है जिसकी छुअन,रे मन
यह विध्वंस है या सृजन रे मन!

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।