Friday, February 19, 2010

अजीब सी रीत

उनके स्वप्न ही साथी अब तो
जो थे कभी मन के मीत।।
हैं ना जाने वो कहाँ पर
ना कोई सुराग ना कोई खबर
बैठा हूँ निढ़ाल सा अब तो
अकेला ही सहलाता अपने पाँव विथकित
उनके स्वप्न ही साथी अब तो
जो थे कभी मन के मीत।।

जग में जब भी बेचैनी पाऊँगा
सोचा था – आवाज दे तुझे बुलाऊँगा
किंतु मेरा स्वर ही वादियों में अब तो
गूँजकर आता है मेरी ओर विपरित
उनके स्वप्न ही साथी अब तो
जो थे कभी मन के मीत।।

उन गीतों को कैसे दोहराऊँ
जो सुख के क्षणों में थे गाए
दर्द-ए-दिल ही बढ़ाते अब तो
वापस ले ले खुशी के गीत
उनके स्वप्न ही साथी अब तो
जो थे कभी मन के मीत।।

चार दिन जो प्रिय संग रहेगा
फिर उम्र भर तनहा फिरेगा
ढूँढता फिर रहा नीरव अब तो
चलाई जिसने ये अजीब सी रीत
उनके स्वप्न ही साथी अब तो
जो थे कभी मन के मीत।।

Tuesday, February 16, 2010

नियति का क्रूर व्यंग्य...


नियति का ये क्रूर व्यंग्य
तब मन से सहा नहीं जाए

जब कोई प्यासा पनघट आए
रीता कंठ और प्यासी आँखें लिए
पनिहारिन को न पाकर
लड़खड़ाता वापस पथ को जाए
नियति का ये क्रूर व्यंग्य...

उम्र भर जिसने पी हो मधु
साक़ी के हाथों ही मनुहारों से
टूटी-सी प्याली में हलाहल
उसको अंतिम बार पिलाया जाए
नियति का ये क्रूर व्यंग्य...

मन की शहनाई पर जिसने
हरदम राग खुशी का गाया हो
उसके अरमानों के आगे
मोम़िन मर्सिया गाने आए
नियति का ये क्रूर व्यंग्य...

सबकी राहों में बिखरे फूल
इस जतन में जिसने उम्र गवाँई
उस नीरव के सिर पर
ताज काँटों का पहनाया जाए
नियति का ये क्रूर व्यंग्य...

Monday, February 15, 2010

तनहाई

कितनी जल्दी बीते वे दिन
जबकि हम-तुम साथ रहे
युग बीते यों पल बीते
तनहाई हम काट रहे

पल भर तुमसे नजरें मिलती
लगता बहार आ गई चमन में
अब तो खिज़ां है सब ओर
चार दिन हम बीच बहार रहे

अब तो तेरी आहट सुनने को
हरदम दिल मचलता है
कितने नादाँ थे हम तब
जो तेरी पायल से बेजार रहे

चीख मेरी दबकर के रह गई
शहनाई की गूँज तले
कितनी जल्दी डोली सज गई
कितनी जल्दी कहार गए

Sunday, February 14, 2010

कई रातों को ऐसा भी होता है



कई रातों को ऐसा भी होता है
कि नींद नहीं आती,
बिल्कुल नहीं
आती है तो बस
याद आती है
तेरी याद।
कई रातों को ऐसा भी होता है
तब बेचैन सा में,
बिस्तर पर बदला करता हूँ
करवटें
और हर करवट़
छोड़ जाती है
मन की चादर पर
तेरी यादों की
नई सिलवट।
कई रातों को ऐसा भी होता है
कभी तकिए को
लेटा हूँ
बाँहों में,
कभी बाँहों को,
बनाता हूँ तकिया,
कभी चौंक कर
जलाता हूँ बिजली
कभी अँधेरों को
मीत बनाता हूँ
करता हूँ
गुफ्तगू
लेकिन नींद तब भी नहीं आती,
आती है तो बस
याद आती है
तेरी याद
कई रातों को ऐसा भी होता है
और तब तेरी यादों के
ताने-बाने बुनता है
मन
और उधेड़ता फिर से
उनको
इसी उधेड़बुन में
अचानक
ना जाने कब
आँखें बुनने लगती हैं, ख्वाब
तेरे ख्वाब
कई रातों को ऐसा भी होता है।


करता रहूँ तुझसे अभिसार

साथी मेरे मन को ले चल से मझधार
तुम थामो पतवार नेह की
मैं गाऊँ झूमकर गीत मल्हार
साथी मेरे मन को...
अपने दिलों की नैया बनाकर
प्रीत के चप्पू चलाकर
चल दे दूर कहीं यहाँ से
हो इस स्वप्निला पर सवार
साथी मेरे मन को...
सेज अब इसमे सजेगी
डोली भी यही बनेगी
कितनी सुंदर विदाई होगी
सागर बना हो जिसमें कहार
साथी मेरे मन को...
अब यहीं जीवन कटे
माझी की इच्छा यही
जब तक न साहिल मिले
करता रहूँ तुझसे अभिसार
साथी मेरे मन को...

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।