Saturday, March 6, 2010

जीत ले सारा चमन

बना पहचान अपनी जीत ले सारा चमन
रोना-धोना छोड़ रे आज तेरा है गुलशन
तू जिसको कहता नियति
नहीं है वह स्वीकार मुझे
होगी लड़ाई लड़ना अस्तित्व की
छोड़ करना सबको सादर नमन

बना पहचान अपनी जीत ले सारा चमन
रोना-धोना छोड़ रे आज तेरा है गुलशन
तोड़ना होगा तुझको बहुत कुछ
नज़ाकत अपनी न देख
हाथ जो तुझको लगाए
छेद दे उसका बदन

बना पहचान अपनी जीत ले सारा चमन
रोना-धोना छोड़ रे आज तेरा है गुलशन
किस सोच में है तू डूबा
लग रहा अजीब ये सब तुझे
धर्म के लिए तू लड़ रहा
स्वार्थ है तेरा अति पावन

बना पहचान अपनी जीत ले सारा चमन
रोना-धोना छोड़ रे आज तेरा है गुलशन

Friday, March 5, 2010

फीका है सारा चमन


आज फीका लगता है सारा चमन
पाला था जिसको जतन से
अश्रु-स्वेद-रक्त के हवन से
तोड़ डाला किसने जाने
ये खिलखिलाता सुमन

आज फीका लगता है सारा चमन
तोड़ कर टहनी से उसको
मैं अपना घर सजा लूँ
थी नहीं ये इच्छा, सोचा था
देखता रहे उसे गुलशन
आज फीका लगता है सारा चमन

सारा बाग जब था खिला
वो अकेला मुरझा रहा था
पूछने पे कारण उसने बताया
मुझको न जमीं मिली
न ही मिला गगन
आज फीका लगता है सारा चमन

Tuesday, March 2, 2010

अस्तित्व संकट

तुम्हारी याद
कंकड़ों की तरह
अगर गिरती रही
मेरे मन सरोवर में
इसी तरह
तो मुझे लगता है
यकीनन
लगने लगेगी
एक टापू-सी
................

और तब
मैं अपनी
वजह से नहीं
तुम्हारी यादों के
टापू के कारण
पहचाना जाऊँगा
शायद
यही है
मेरे अस्तित्व की नियति

नई ऊर्जा

मैं

हर बार
कविता लिखकर
यही सोचता हूँ कि
अब
अगली बार
नहीं लिख पाऊँगा
कोई कविता
कहाँ से लाऊँगा
फिर से
इतने भाव
भंगिमाएँ
भावनाएँ
शब्द
औऱ अर्थ औऱ इनका समन्वय...
किंतु
न जाने कब
मन की टीस
लरज उठती है
घाव हो जाते हैं
हरे फिर से
और दर्द की ये कसक
अंदर बैठे भावुक रचनाकार को
दे जाती है
नई ऊर्जा
नई प्रेरणा
नई शक्ति
और तब
आहत मन से
कलम से
उमड़ पड़ती है
नई कोई कविता

Monday, March 1, 2010

1 मार्च.......


जन्मदिन तुम्हें मुबारक साथी
जीवन का सुख पाओ तुम
महके जीवन की बगिया और
नेह सदा बरसाओ तुम
जन्मदिन तुम्हें मुबारक साथी
तेरे मन की इच्छाएँ
सदा सफलता को चूमे
जो चाहो वो मिले सदा
मनचाहा ही पाओ तुम
जन्मदिन तुम्हें मुबारक साथी
मौसम तुम्हारे दास बने और
ऋतुएँ तुम्हारी हो दासी
जब चाहो बहार ले आओ
चाहो जब सावन बन जाओ तुम
जन्मदिन तुम्हें मुबारक साथी
तेरे प्यार में शायर बनकर
तेरे रूप पर लिखूँ गज़ल
सदा गुनगुनाता रहूँ तुम्हें
गीत मेरा बन जाओ तुम
जन्मदिन तुम्हें मुबारक साथी
रहो सलामत ओ मीत मेरे
हो खुशियों से अनुबंध सदा
सौ साल जियो प्यार मेरे
उम्र नीरव की भी पाओ तुम
जन्मदिन तुम्हें मुबारक साथी

Sunday, February 28, 2010

कई रातों को ऐसा भी होता है


कई रातों को ऐसा भी होता है
कि नींद नहीं आती,
बिल्कुल नहीं
आती है तो बस
याद आती है
तेरी याद।
कई रातों को ऐसा भी होता है
तब बेचैन सा में,
बिस्तर पर बदला करता हूँ
करवटें
और हर करवट़
छोड़ जाती है
मन की चादर पर
तेरी यादों की
नई सिलवट।
कई रातों को ऐसा भी होता है
कभी तकिए को
लेटा हूँ
बाँहों में,
कभी बाँहों को,
बनाता हूँ तकिया,
कभी चौंक कर
जलाता हूँ बिजली
कभी अँधेरों को
मीत बनाता हूँ
करता हूँ
गुफ्तगू
लेकिन नींद तब भी नहीं आती,
आती है तो बस
याद आती है
तेरी याद
कई रातों को ऐसा भी होता है
और तब तेरी यादों के
ताने-बाने बुनता है
मन
और उधेड़ता फिर से
उनको
इसी उधेड़बुन में
अचानक
ना जाने कब
आँखें बुनने लगती हैं, ख्वाब
तेरे ख्वाब.........
कई रातों को ऐसा भी होता है

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।