Friday, April 16, 2010

मनमीत नहीं हो पास

कैसे खुल कर हँस पाऊँ रे
जब मनमीत नहीं हो पास मेरे
मन उखड़ा-उखड़ा रहता है
आँखें रहती है खोई सी
जब अश्रु भरे हो नैन
कैसे खुलकर हँस पाऊँ रे
कैसे खुल कर हँस पाऊँ रे
जब मनमीत नहीं हो पास मेरे
कंठ अवरूद्ध सा रहता है
स्वर में है नीरवता छाई
जब हृदय में हो तीर चुभे
कैसे मधुगीत गाऊँ रे
कैसे खुल कर हँस पाऊँ रे
जब मनमीत नहीं हो पास मेरे
जग में है कोलाहल छाया
मन मेरा है निःशब्द सा
ले गया है साज़ कोई
अब कैसे राग बजाऊँ रे
कैसे खुल कर हँस पाऊँ रे
जब मनमीत नहीं हो पास मेरे
हर साया लगता है हो मीत
 हर आहट लगता हो प्रियतम
खोज में हूँ विरही नीरव की
जिसको पीड़ा अपनी बतलाऊँ रे
कैसे खुल कर हँस पाऊँ रे
जब मनमीत नहीं हो पास मेरे

Thursday, April 15, 2010

एक बात कहूँ


एक बात कहूँ कह-कह कर
कह डाली तुमने सारी बातें
कैसे मुझ बिन दिन काटे तनहा
कैसे बीती मुझ बिन शामें
देर सुबह तक सोई अधजागी-सी
कैसे जाग कर तुमने काटी अपनी रातें
एक बात कहूँ कह-कह कर
कह डाली तुमने सारी बातें
कैसे कलियों के संग मुस्काईं
कैसे फ़ूलों संग मुरझाईं
कभी उजालों से संग सोई
कभी अँधेरों के संग की बातें
एक बात कहूँ कह-कह कर
कह डाली तुमने सारी बातें
कैसे जाड़ों में आ गया पसीना
जब याद किया मेरा चुंबन
घनी छाँव सी शीतलता पाईं
कैसे मेरी याद तले आके
एक बात कहूँ कह-कह कर
कह डाली तुमने सारी बातें
सावन कैसे बरसा रिमझिम
कैसे नयनों से आँसू बरसे
कैसे घनघोर घटा छाई
कैसे आईं मुझ बिन बरसातें
एक बात कहूँ कह-कह कर
कह डाली तुमने सारी बातें
हम भी एक बात कहें
यदि कह डाली हो तुमने अपनी बातें
काटा है दौरे जुदाई रो-रोकर
नहीं रहे हम भी हँसते-मुस्कुराते
एक बात कहूँ कह-कह कर
कह डाली तुमने सारी बातें

स्वप्निल-सा एक साल


प्रीत-पंख लगाकर उड़ गया
स्वप्निल-सा एक साल
दुख की चिंता क्यों करूँ
सुख ही सुख है पाया
सब इच्छाएँ पूरी हुईं
मन में रहा न कोई मलाल
प्रीत-पंख लगाकर उड़ गया
स्वप्निल-सा एक साल
प्रतिबंध लगे हो नज़रों पर
दिल पर लगाए पहरे कौन
खुद प्रश्न ही उत्तर हुए
अब पूछे कौन सवाली
प्रीत-पंख लगाकर उड़ गया
स्वप्निल-सा एक साल
पूनम का उजियारा भी पाया
मावस का तम भी छाया
झूठा तेरा गुस्सा देखा
देखा शर्म से होना तेरा लाल
प्रीत-पंख लगाकर उड़ गया
स्वप्निल-सा एक साल
देस रहे या रहे विदेस
दिल रहा सदा तुम्हारे पास
चार पहर बारह मास
रहा यही बस एक हाल
प्रीत-पंख लगाकर उड़ गया
स्वप्निल-सा एक साल
बाँके नैन शोख अदा
मीठे बैन चंचल मन
मधुर अधर कोमल तन
मदमाती अँगड़ाई देखी
देखी इठलाई सी चाल

प्रीत-पंख लगाकर उड़ गया
स्वप्निल-सा एक साल
तेरे होंठों पर थी स्मित
मेरी खुशी का ये राज़
नशीली आँखों से न देख नीरव
दिल में उठता है भू-चाल
प्रीत-पंख लगाकर उड़ गया
स्वप्निल-सा एक साल

Monday, April 12, 2010

उड़ जाएगा ये विहग भी


उड़ जाएगा ये विहग भी

पीछे सूना नी़ड़ रह जाएगा
एक दिन इसने बड़े जतन से
अपना नीड़ बनाया था
अपने ख़्वाबों सा ही उसको
हर यतन सजाया था
ये मंजिल नहीं रे इसकी
कल ये अपने पथ पर जाएगा
उड़ जाएगा ये विहग भी
पीछे सूना नी़ड़ रह जाएगा
आया था जब यह मतवाला
हर साक़ी दीवानी थी
अपने हाथों से भर प्याला
करती थी सब मनमानी थी
जिसको सुखकर हो हलाहल
मधुशाला में कब तक रूक पाएगा
उड़ जाएगा ये विहग भी
पीछे सूना नी़ड़ रह जाएगा
गुलशन में जब ये खिला
मौसम का बदला था नज़ारा
इस फूल को पाने हेतु
हर मधुकर ललचाया था
खिलकर मुरझाना नियति सबकी
यह कैसे बच पाएगा
उड़ जाएगा ये विहग भी
पीछे सूना नी़ड़ रह जाएगा
हर खुशी चंद दिन की
बाद अँधेरी रात है
उम्र प्यार की कम होती है
जग देखी ये बात है
आज ही कह ले, कर ले नीरव
यह वक्त न फिर पाएगा
उड़ जाएगा ये विहग भी
पीछे सूना नी़ड़ रह जाएगा

Sunday, April 11, 2010

ख़त


कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
दर्द भरे अफ़सानों को,
घोल अश्कों की स्याही में
जज़्बातों को कलम बनाकर
दिल पर उकेरे जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
संबोधन क्या दें? बस
इसी विवशता के कारण
लिफ़ाफ़े में भरकर
कोरे ही भिजवाए जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
कभी बाद संबोधन के
लरज़ती काँपती ऊँगलियों से
मुश्किल से वही तीन अल्फ़ाज
बार-बार बनाए जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
ढेर सारा लिखकर भी
और लिखने की ख़्वाहिश से
हाशियों पर तारीफ में
चंद शेर लिख दिए जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
लिखने वाला लिखता ही नहीं
पाने वाला पाता ही नहीं
आँखों से आँखों तक लेकिन
रोज़ाना पहुँचाए जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं
कभी हवाओं के दामन पर
कभी बादलों के सीने पर
लिखकर फूलों की खुश्बू से
नीरव तक पहुँचाए जाते हैं
कुछ ख़त यूँ भी लिखे जाते हैं

मधुमौसम में जाने वाले


विदा प्रिय ! हो शुभ चिरप्रवास

फूल रहे टेसू यहाँ
अमराई बौरा रही
चटख रहा कचनार भी
दहक रहा पलाश
ऐसे मधुमौसम में जाने वाले
विदा   प्रिय! हो शुभ चिरप्रवास
स्वर गुंजित रहेगा तेरा
गूँजेगी तेरे पंखों की परवाज
अपने ध्येय को जाने वाले
विदा प्रिय ! हो शुभ चिरप्रवास
तेरी आहट, तेरी साँसे
 और मधु-स्वर तेरा
साथ गुजारे लम्हों की
छोड़े जाना याद
ओ यादों को छोड़े जाने वाले
विदा प्रिय ! हो शुभ चिरप्रवास

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।