Saturday, June 19, 2010

नीलकंठ


जब
दुख पीकर
और
खुशी बाँटकर
जिऐ
तो गहरा कहा
जाएगा तुझे

Thursday, June 17, 2010

मैंने घर को जंगल बना रखा है !


इधर या उधर आगे या पीछे
नीचे और उपर(!) जिधर से शुरू करूँ
पेड़ ही पेड़ हैं
(झाड़ियों को भी यही समझता हूँ मैं
जैसे ब्लॉग और माइक्रो ब्लॉग एक ही समझे जाते हैं)
बाँस, पीले फूलों वाला केल
कटहल, गूलर, गुच्छों और विरल फूलों वाला लाल कनेर
अशोक, बोगनबेलिया लाल, गुलाबी, पीला, सफेद
नीम कड़वा और मीठा
नींबू कागजी और बिजौरा, बेर
आम कलमी और देसी, पपीता
लिली सफेद, गुलाबी और लाल फुटबॉली
कोयल/नीलकंठ, चंपा लाल और पीला
गोल्डन ग्रीन हैज, सीताफल, बदाम
जामफल, गुलमोहर, अमलतास, संतरा
लेमनग्रास, गुलटर्रा, चमेली, जूही
जामुन, रबर, क्रिसमस फ्लॉवर, मोगरा
क्रिसमस ट्री, पारिजात जंगली, गुलाब देसी, पीले, लाल, सफेद
पीपल, बरगद, सागौन, आँवला, गोल्डन शॉवर, तुलसी, मनीप्लांट
कैक्टस, लतरें, फर्न, दवा बिच्छु की, जरकंडा, अडेनियम, ज़ेड
कुछ बिन उगाए ही, उग गए हैं, जंगली फूल और पौधे....
मैं अपने घर के चारों ओर जंगल लगा रखा है
तुम कहते / कह सकते हो, मैंने घर को जंगल बना रखा है

Wednesday, June 16, 2010

मैंने तो बस पेड़ लगा रखे हैं

मौसम चितरता रहता है ,मैंने तो बस पेड़ लगा रखे हैं
लोग कहते हैं घर के चारों ओर, कैनवास सजा रखे हैं

रंग, रूप, आकृति, गंध और छाया क्या नहीं
कुदरत ने मेरे घर के चारों ओर,जादू बिछा रखे हैं

ठंड में कुनकुना और भर गर्मी में शीतल है मेरा घर
भरम है तुमको, मैंने एसी और कूलर्स लगा रखे हैं

Monday, June 14, 2010

मैं तो मायूस लौटा हूँ


जरूरी नहीं कि चीजें सुलझती है अक्ल के हवाले से
मैंने तो अक्सर सुलझते देखा है इन्हें हीले-हवाले से

गर तेज हो हवा तो गुल हो जाती है शमा
कुछ दिए जब भी जलते रहते हैं तूफान में मतवाले से

मौत अजीब शै है, दूर कर देती है शक्लो सूरत
याद कहाँ छीन पाता है कोई माशूक की दिलवाले से

तुम्हें मिला होगा ख़ुदा, मुबारक़ हो, गर मिला
मैं तो मायूस लौटा हूँ, हर दीनो-हरम, मस्जिद-ओ-शिवाले से

वो मेरी गोद, मेरे कांधे पे रोकर हल्के हुए
मैं अपने छालों को सहलाऊँ, किस रिसाले से

Sunday, June 13, 2010

वह अनजानी जगह

दूर बॉटल बुरूस
शीशम, अमलतास और गुलमोहर
निगाहें लौट आती हैं
इनकी खुशबू
और आकर्षण से
सराबोर होकर
मैं
यहाँ दूर बैठा हूँ
क्या सचमुच
हाँ भी, नहीं भी
तो फिर?
अनजानी
अनपहचानी
धुँधलाई-सी एक
गुफा-सी में
अरे! यह तो मन है किसी का
किसका?
खोज रहा हूँ, उसी को
अथक, अनवरत ........

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।