Thursday, June 24, 2010

अवशता


एक दिन
एक निश्चित दिन
तुमसे न मिल पाने की
अवशता के पूर्व ही मुझे आज लगा
जैसे
तुम दू...र कहीं चली गई हो......

Wednesday, June 23, 2010

कभी खुद कविता का विषय


कितना विचित्र है मन
खुद ही बुनता है परेशानियाँ
झेलता है दुख और त्रास
रहता है बेचैन
और देर-देर तक उदास
और फिर
खुद ही
आशा की किरण
खोज निकालता है
देता है दिलासा
भरता है उत्साह
जाँबाजी और जिंदादिली
कभी कविता लिखवाता है
कभी खुद कविता का विषय बन जाता है

Monday, June 21, 2010

मेटामार्फि़स्म

ज्यादा अंतर्मुखी
ज्यादा बेचैन
ज्यादा परेशान
कुछ-कुछ चिढ़चिढ़ा
क्या तुम सोच सकती हो
तुम्हारे सामने
अल्हड़,
पागल, दीवाना औऱ हँसमुख
रहने वाला मैं
ऐसा भी हो रहा हूँ

Sunday, June 20, 2010

काश....


कभी-कभी इतना
बेचैन हो जाता हूँ
दुनियाई परेशानियों से
कि लगता है
काश, तुम होती.......

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।