Saturday, July 10, 2010

वार्तालाप


हमेश
बहुत लंबी-चौड़ी, विस्तृत
मगर परिधि-सी तुम
मुझे घेरे रहती हो।
बहुत ऊँचे, विशाल,
 सीमाहीन आकाश से तुम
छाए रहते हो मुझ पर।
बहुत गंभीर, गहरी, रोचक
किताब-सी तुम
बसी रहती हो ज़हन में
बहुत स्वतंत्र, नटखट
 कविता की तरह
कल्पना-से तुम
 मँडराते रहते हो
 मेरे आस-पास

Wednesday, July 7, 2010

रिश्ता


तुमसे
 मेरा
 ऐसा रिश्ता है

जैसा
शब्द का प्रकाश से
स्तब्धता का अँधेरे से

अपनेपन की खुशबू

अपने अन्वेषे सत्य को
क्यों तौला जाए
दूसरों के सत्य से
विरूप ही सही
अपनेपन की खुशबू
सिर्फ इसी में मिलती है

Monday, July 5, 2010

आज शहर बंद है

दूर तक बादलों के निशां नहीं, आसमान नफ़ासतपसंद है
मौसम भी है पहचानता, आज देशो-शहर बंद है

चलो भगाएँ बोरियत मिलकर, ऐसा कुछ नया करें
खोद दें कुछ नालियाँ, बहा दें पानी जो पोखरों में बंद हैं

तुम अपने में डूबे थे, मैं खुद में गिरफ्त
खोल दो खिड़कियाँ, गुम हो सीलन जो सीखचों में बंद है

खिलखिलकर हँस दो, बदल जाए मौसम का नज़ारा
यह चेहरा रेशमी, उदासी टाट का पैबंद है

रोज-रोज भीड़ में इतना रहना भी अच्छा नहीं
भूल गए तुम्हीं कहते थे, मुझे तनहाई बेहद पसंद है

रेंग-रेंग कर चल रही हैं, रफ्तारों की ख्वाहिशें
मुझे देर हो जाएगी आने में, आज शहर बंद हैं

Sunday, July 4, 2010

तुम्हारी प्रतीक्षा


जिसने भी देखा होगा
गौर से
झुककर मेरी दहलीज को
उस-उसने लिखी पाई होगी
तुम्हारी प्रतीक्षा
स्वागतम् की जगह

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।