Wednesday, September 15, 2010

पीली तितलियाँ


अब भी दिख जाती है
तितलियाँ
रंग-बिरंगी,
कलात्मक पंखों और
टेक्सचर वाली
मगर,
कहाँ गईं वे
सादे पीले रंगवाली
आदिम तितलियाँ
जो झुंड-का-झुंड
बैठी रहती थी
चुपचाप
पुवाड़ियों की हरी झाड़ियों की
कतारों में
पीले फूलों के बीच
उन्हीं-की-सी होकर
और पास जाते ही
उड़ जाती थीं
निःशब्द, नीरव, अनायास
सपनों की यादों-सी
..................................
जैसे उड़ गया है
मॉल की आकर्षक महँगी डिश के बीच से
पंजी-दस्सी में स्कूल के बाहर मिलने वाले
समोसे और चटनी वाली पपड़ी का स्वाद
.......................................
मुझे पीली तितलियाँ और
खस्ता पपड़ियाँ
अब ज्यादा याद आती है

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।