Friday, October 8, 2010

तुम्हारे लिए




तुम्हारे लिए – अपने आसपास
इतनी इकट्ठी
कर ली थी
उदासी
कि
जब खुशी का मौसम आया
तो
हँसने
के लिए
मेरे पास
नहीं बची थीं
एक कतरा
हँसी भी।

Wednesday, October 6, 2010

आस्तिक

सीने के बजाय सिर से लगाया
तुम्हारी किताब को –!
यार, तुम न हुए
खुदा हो गए !

Tuesday, October 5, 2010

मेले में...

मुक्त अकेलापन –

और मैं।

क्या सचमुच अकेलापन

मुक्त होता है?

नहीं, वह

निर्युक्त है

आबद्ध है

एक अकुलाहट भरी

प्रतीक्षा में।

Monday, October 4, 2010

नियति

दर्द हर बार मिला
और ताउम्र साथ रहा,
खुशी हरदम मिली,
मगर साथ रही पल-छिन

Sunday, October 3, 2010

अज़ीब

दूर रहता हूँ तो
यकीं-सा रहता है
रह सकता हूँ दूर भी
मिलने पर क्यों ऐसा लगता है अक्सर
कि रोज-रोज क्यों
न मिलता रहा....


मेरा काव्य संग्रह

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।