एक उलझन ही सही मगर कुछ है तो सही
उनके पास तो सिवा खालीपन के कुछ नहीं
इतना यकीन था खुद पर और परस्तिश पे
इबादत को खड़े हुए तो खामोशी ही पढ़ते रहे
कभी अजान देता मैं और काश कि वो आते
खुदा न सही, उसकी खुदाई के दीदार तो हो जाते
हाय री किस्मत क बेरहमी को देखिए
वो आते हैं मेरे सामने हमेशा बुत बनके
कभी बुत भी बोलेगा क्या बता दीजिए
(समझ लो जुबा खामोशी की खुद ही यार)
बुत को बोलने की सजा तो न दीजिए
बहुत खूब!
ReplyDelete