Friday, April 1, 2011

ओ निर्माता

स्वयं को
अकेला रखने का मैंने
एक अजब तरीक चुना
पहले तुमसे जुड़कर
काटता रहा सबको
हर रिश्ते हर बंधन को
और जब सबसे मुक्त हो गया
तो तुमसे भी अलग हो गया
इस तरह मैं
पूरी तरह
मैं रह गया

Monday, March 28, 2011

हम अपरिभाषित

व्यक्तित्व से अस्तित्व तक की
देते रहे हम परिभाषा
बाँधते रहे उन्हें
कभी शब्दों से
कभी चुप्पियों में
कभी शब्द और सन्नाटे के अंतरालों में
किंतु स्वयं की न तो कभी दी परिभाषा
न बाँधना भाया किसी से
तो खुद अपरिभाषित
अपरिमित
निर्बंध रह गए।

Sunday, March 27, 2011

खोजने निकला तो

खोजने निकला तो
मिले तो बहुत
मगर...
कोई चंचल मिला, कोई शांत मिला
कोई खुश मिला, कोई अशांत मिला
कोई बौराया, कोई पगलाया-सा
कोई उदास, कोई निराश मिला
खोजने निकला तो
कोई प्यारा-सा, कोई न्यारा-सा
कोई जीता-सा, कोई हारा-सा
कोई उत्साहित, कोई विथकित
कोई अनुरक्त, कोई विरक्त
कोई यायावर, कोई सैलानी
कोई रमता जोगी, कोई तपी-ध्यानी
खोजने निकला तो
एक तुम ही न मिले
कहीं
ओ अभिमानी
ओ तेजोमय
ओ प्रभामय
ओ अमित स्वरूप
ओ मुझ मृग की तृष्णा के झिलमिल पानी
खोजने निकला तो
मिले तो बहुत
मगर एक तुम ही मिले



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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।