Saturday, April 9, 2011

श्रीनगर ( 07-06-07 )

जल्द होती है सुबह
देर तलक रहती है रोशनी
मौसम फिर भी ठंडा और खुशगवार
शायद यही बात
गुजरती हो दुश्मनों को नागवार
फैलाते थे दहशत
करते थे मासूमों पर वार
अब
सबकुछ ठीकठाक
पुरसुकून, खुशमिजाज
ओ कश्मीर! तुझपे जाँनिसार

Friday, April 8, 2011

पटनीटॉप

दिन भर में मुझे मिला
थोड़ा-सा एकांतिक अनुभव
खुशबू चीड़ की
चीड़ की एक टहनी
और चीड़ की छाल
झुंड बनाकर बैठे कश्मीरी
उनके बच्चे
मासूम बच्चियाँ
सेब के रंग-से
रंग-बिरंगे फूल
चीड़ की सीकों की धूल
भरे हुए पाँव-पिंडलियाँ
धौंकनी साँसें
गुलाब के गुच्छों वाली हैज
शांत-एकांत वाली सेज
और रह गया – बच गया जो
सनासर, टूटे पेड़ों के तनों के
बीच से निकलता हो अमिता का सर
ऐसा फोटो लेने का अवसर
और माईलस्टोन-सा तुम्हारा कथन
सोच के होती है हैरानी कि स्साला ! पसीना कैसे आता होगा?

Wednesday, April 6, 2011

एंथेलियम

अभी-अभी चाँद के चारो ओर
रोशनी का एक घेरा देखा
अजीब-से रोमांच के साथ सोचा
महान आत्मा
जन्म लेती हो , न लेती हो
इस समय
दिव्य क्षण के जरूर
निकट होते है हम

Tuesday, April 5, 2011

ऐ सपने !

मैंने तो देख लिया
ऐसा सपना
जो कभी पूरा न होगा
मगर
कभी नहीं
ये निर्धारण कैसे मेरा
ये तो सपने के ही हाथ
कि वह वही रहे
या साकार हो जाए
ऐ सपने !
मैं तो तुझसे यही कहूँ
तू कभी पूरा न हो



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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।