पुस्तक प्रदर्शनी में
कविताएँ इतनी महँगी क्यों होती हैं
न इन्हें कोई खरीदता है
न पढ़ता है
न समझता है
(देखने वाले भी होते हैं इक्के-दुक्के ही)
फिर
कविताएँ इतनी महँगी क्यों होती है
कवि
इतना असंपृक्त क्यों होता है
न उसे कोई सराहता है
न दुलारता है
न समझता है
(जो समझते हैं, वो भी उपरी तहों में)
फिर
कवि कविताएँ क्यों लिखता है
कवि इतना स्वांत सुखाय कैसे होता है
कविताएँ इतनी महँगी क्यों होती है