जब-जब ऋतु वर्षा आती है
जूही हमारे घर के बाहर
श्वेत सुगंधित गलीचा बिछाती है
कोयल नामक बेल पर खिलते हैं
नयन-भावन नीले रंग के फूल
ढ़ेर सारे हरे पत्तों से लदे
दरख्तों के कारण सूर्य किरण नहीं आ पाती है
दिन भर रहते हैं हम सुरमई उजाले में
शाम और रात जल्द उतर आती है
गिलहरियाँ दौड़ती रहती है पेड़ों पर
पीली रंगीन तितलियाँ मँडराती हैं
नए-नए रंगों के खिलते हैं गुलाब
तुलसी भी बड़े दल उपजाती है
सागौन पर आ जाते हैं बौर
गुड़हल भी बौरा जाती है
भरे मन से करनी पड़ती हैं छँटाई
बोगनबेलिया इतनी फैल जाती है
गुलमोहर हो जाता है छतनार
अमलतास को धूप नहीं मिल पाती है
सुंदर चिड़ियों के नए जोड़े आ जाते हैं
जाने कहाँ से, गौरेय्या गाने गाती है
काई-सीलन-हरे पत्ते और अलबेले फूल
याद घने जंगल की आने लग जाती है
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ऐसे में जब भी छुट्टी आती है
कोई कहीं बुलाए देह देहलीज के पार नहीं जाती है