Monday, February 27, 2012

टर्मिनेटर


कुम्हलाए फूलों ने कहा
हमें नहीं दुलराओगे
तीन दिन हो गए है, पानी कब पिलाओगे!
टपकते नल ने कहा
बातें करते हो जल संरक्षण की
मुझे कब सुधरवाओगे!
तीखे पत्थर के टुकड़े ने कहा
मुझ पर डालो रेती-मिट्टी
वरना चोटिल हो जाने के आरोप लगाओगे
टूटे गमलों, सूखी घास, छत के जालों
गंदे कपड़ो, रूखे जूतों, किताबों की गर्द ने भी
अपना-अपना हिस्सा माँगा
हमारी भी सुनो हमें कब सहलाओगे
सबको दिया उनका दाय
और भूल गया दिल की पुकार
जिसने की थी इल्तिज़ा
अल्लसुबह, आज इतवार है यार
फुर्सत के कुछ लम्हें मेरे साथ बिताओगे!

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।