Saturday, March 9, 2013

रीतते मटके का पानी



उसका मेरी ज़िन्दगी से ऐसा नाता है
जैसे नये मटके में पानी ठंडाता है

कतरा-कतरा वो रिसता जाता है मुझसे
फ़ना होकर भी स्वादो-खुशबू बढ़ाता है

मेरा अस्ल कहना नहीं महसूस करना है
रीतते मटके का पानी ठंडा होता जाता है

पता नहीं वो मुझमे है या मैं उसमें
जादू-सा है कुछ, हममे बढ़ता जाता है

पास रहे या दूर, आगे-पीछे-दाएं-बाएं
कहीं रहे वो कायनात-सा फैलता जाता है

मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।