कुछ सौंदर्य से दूर रहे बेचैन रहे कुछ पास रहकर भी बेज़ार रहे कुछ को व्यापा ही नहीं यह पास रहे, दूर रहे निर्विकार रहे .................. ऐसे दुनियादार लोगों से ही दुनिया गुलज़ार रहे
ऋतु-मौसम आगे खिसक गये
दिन बासंती कम हो गये
सर्दियाँ मार्च तक गर्मियाँ अप्रैल से
दिन बहारों के कम हो गये
शादी शाही होने लगीं ज्यादा दिन साथ रहने के कम हो गये लोगों से मिलने-जुलने में दिन तन्हाई के कम हो गय शामो-सहर एक बैचेनी सी दिन फुर्सत के कम हो गये