Friday, August 8, 2014

बोझिल पलकें...



बारिश
हो या न हो
इन दिनों
हम दोनों को सोने नहीं देती
.......
जब नहीं होती
तो रातों को नींद नहीं आती तुम्हें
देखो नामो निशान नहीं है बादलों का
अधूरी नींद से उठाती-दिखाती हो मुझे
मैं कुनमुनाता-चिड़चिड़ाता हूँ
सो जाओ, हो जाएगी
और जब बरसता है पानी
मैं उठ जाता हूँ और
उठाता हूँ तुम्हें
लो देखो, बरस रहे हैं बादल
तुम खुश हो जाती हो, जाग जाती हो
...........
इन दिनों अधखुली-खुमारभरी
रहती हैं पलकें हमारी
...........
हमारी बोझिल पलकें
मोहब्बत ही नहीं
प्रकारांतर से
फिक्र-ओ-दुनिया भी जतलाती है

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।