Wednesday, September 10, 2014

दोस्तों को....



साईकिल की
कठोर सीट से
घिस जाते थे
पेंट सबके
थिगलियाँ लगवाते थे
दर्जी दोस्त से

बेलबाटम
सड़क बुहार कर
तार-तार न हो
पुरानी चेन सिलवा लेते थे नीचे

खेल में फूटे होते थे
घुटने, पंजे,कंधे
लंगड़ाकर
चलते थे अक्सर सभी

कुहनियाँ
कंचो के खेल में हार से
लहूलुहान रहती थीं
कपड़ों पर
पड़े रहते थे दाग़
कपड़े की गेंद की मार से
..................
लड़-हार कर ही लौटते थे
घर हम सब
बचपन में,लेकिन
हम सब विश्वविजेता थे

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।