Monday, October 19, 2015

अब कबीर नहीं खड़ा

दौर है बड़ी विडंबनाओं का
वैश्यों का और वेश्याओं का
हर ओर लूट -सी मची है
शोर मुनाफाखोर व्यवस्थाओं का
बाज़ार में अब कबीर नहीं खड़ा
चौराहों पर कब्ज़ा राधे माँओं का
हमाम में नंगों का जुमला चला गया
अब वक्त है सरेआम नग्नताओं का
जो सत् था शुभ था मंगल था ,बीत गया
अब राज्य है अवसरवादी विद्रूपताओं का

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।