मंच से कहने से
हर चीज़
नहीं हो जाती सही
बल्कि
अंतर हो कहने-करने में
कथनी कुछ और हो
कुछ अलग हो करनी
तो भव्य हो जितना
अभिव्यक्ति का ढंग
मर्म तक जाते- जाते
हर शै हो जाती है सतही
हर चीज़
नहीं हो जाती सही
बल्कि
अंतर हो कहने-करने में
कथनी कुछ और हो
कुछ अलग हो करनी
तो भव्य हो जितना
अभिव्यक्ति का ढंग
मर्म तक जाते- जाते
हर शै हो जाती है सतही
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