एक दोपहर शाम-सी
ग़ज़ल के उन्मान-सी
कहीं सांवली कही सुरमई
राधा के घनश्याम सी
जितनी ऊँची उतनी घातक
जंगल के मचान -सी
ज्यादा साफ ज्यादा उजली
शादी के मेहमान-सी
मुझे पुकारे ताने मारे
जाते की मुस्कान सी
ग़ज़ल के उन्मान-सी
कहीं सांवली कही सुरमई
राधा के घनश्याम सी
जितनी ऊँची उतनी घातक
जंगल के मचान -सी
ज्यादा साफ ज्यादा उजली
शादी के मेहमान-सी
मुझे पुकारे ताने मारे
जाते की मुस्कान सी
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