कई बार
ऐसे उतरती है कविता
जैसे प्रभात में
सूरज किरण उतरती है
हर ज़र्रे को कर देती है रोशन
हर रहस्यानुभूति पा जाती है
शब्द
आत्मा अभिव्यक्त हो जाती है
तृप्ति पाती है
..............
कई बार
यूँ भी होता है
कुछ छूता है
दिल-दिमाग को
मगर
पकड़ में नहीं आता
जैसे मुँह पर आ जाए
मकड़ी का जाला
कैद का अनुभव तो नहीं
मगर मुक्ति भी नहीं
...........
कविता लिखना
कभी आनंद का
कभी बहुत जोखिम का काम है
लिखना ,लिख पाना
अयाचित आशीर्वाद का
परिणाम है
ऐसे उतरती है कविता
जैसे प्रभात में
सूरज किरण उतरती है
हर ज़र्रे को कर देती है रोशन
हर रहस्यानुभूति पा जाती है
शब्द
आत्मा अभिव्यक्त हो जाती है
तृप्ति पाती है
..............
कई बार
यूँ भी होता है
कुछ छूता है
दिल-दिमाग को
मगर
पकड़ में नहीं आता
जैसे मुँह पर आ जाए
मकड़ी का जाला
कैद का अनुभव तो नहीं
मगर मुक्ति भी नहीं
...........
कविता लिखना
कभी आनंद का
कभी बहुत जोखिम का काम है
लिखना ,लिख पाना
अयाचित आशीर्वाद का
परिणाम है
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